संवाद/ विनोद मिश्रा
बांदा। देश की आजादी की बात हो तो बुंदेलो की वीरता की गाथा जेहन में उमड़ आती है। स्वतन्त्रता की जंग में देश के कई वीर सपूतों नें जानें गँवा दी, तब जाकर आज हम आजादी की खुली सांस लेते हैं। ऐसे कई स्थल हैं आज भी मौजूद हैं, जो उन बलिदानियों के मूक गवाह बने स्थित हैं। ऐसा ही इस जिले का भूरागढ़ किला है, जो आज भी क्रांतिकारियों की शौर्यता की गवाही देता है। इस भूरागढ़ किला को भूरागढ़ दुर्ग कहा जाता है, यहां अंग्रेजों ने 3300 क्रांतिकारियों को फांसी लटका दिया था।
गजेटियर के अनुसार 14 जून 1857 की बात है। आजादी की चिंगारी भड़क उठी थी। अंग्रेजों के खिलाफ बुंदेली ने विगुल फूंक दिया। जंग शुरू होने पर बुंदेलखंड मे बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय ने नेतृत्व किया था। इस विद्रोह की ज्वाला इतनी भड़क गई कि था इलाहाबाद, कानपुर और बिहार के क्रांतिकारी भी आकर कूद पड़े। अगले ही दिन 15 जून 1857 को क्रांतिकारियों ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट मि. काकरेल की हत्या कर दी थी। इसके बाद 16 अप्रैल 1858 में हिटलक का आगमन हुआ। बांदा की विद्रोही सेना ने उससे भी युद्ध किया था।

इस जंग में तीन हजार क्रांतिकारी भूरागढ़ दुर्ग में मारे गए थे, जबकि बांदा गजेटियर में केवल आठ सौ लोगों के शहीद होने का जिक्र है। 18 जून 1859 में 28 व्यक्तियों के नाम विशेष तौर पर मिलते हैं, जिन्हें अंग्रेजों की अदालत में मृत्युदंड व काला पानी की सजा सुनाई गई थी। भूरागढ़ दुर्ग के आसपास अनेक शहीदों की कब्र हैं।