आगरा : ताजमहल से महज 300 मीटर की दूरी पर मलको गली में स्थित है आवामी शायर नज़ीर अकबराबादी की कब्र है. जो साल के 364 दिन बदहाल और बसंत पंचमी के रोज़ कुछ घण्टे के लिए आबाद होती है। मिया नज़ीर से सोचा भी नहीं होगा कि देहली से आगरा आने पर उसको सिर्फ आगरा में बसंत पंचमी में याद किया जाएगा , बाकी दिन उनसे क़ब्र अवाम की आराम गाह बन जाएगी।
जानिए नज़ीर अकबराबादी के बारे में
आगरा किले के किलेदार नवाब सुलतान खां की बेटी का दिल्ली के मोहम्मद शाह रंगीला से निकाह हुआ था. सन् 1735 में दिल्ली में नजीर का जन्म हुआ था. उनका असली नाम वली मोहम्मद था. नजीर अकबराबादी का ताजगंज की गलियों में बचपन बीता. उनकी रचनाओं को खूब बुलंदी मिली. कहते हैं कि, नजीर अकबराबादी को ताजमहल से इस कदर मोहब्बत थी कि, वे कभी आगरा छोडकर नहीं गए. वे ताजमहल के साए में बडे़ हुए और यहां पर ही सन् 1830 में सुपुर्द के खाक किए गए.
ताजगंज की मलको गली में मशहूर शायर नजीर अकबराबादी की मजार के पास ही उनके परिवार की मजार बनी है. उनकी क़ब्र पर अब आवारा जानवर घूमते रहते हैं, चारों तरफ गंदगी है. कोई भी साहित्यकार, कलाप्रेमी या लेखक इस तरफ ध्यान नहीं देता. यहां तक कि इसे संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया गया. हर साल बसंत पंचमी पर लगने वाला बसंत मेला, इस साल यहां पर नहीं लग रहा है.
बज्म-ए-नजीर के अध्यक्ष रहे स्व. उमर तैमूरी के बेटे आरिफ तैमूरी बताते हैं कि मीर, इब्ने इंशा, मुसहफी वगैरह नजीर अकबराबादी के समकालीन थे. नजीर ने हर विषय पर लिखा. सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल के तौर पर हर साल बसंत पर उनकी याद में मेला लगाया जाता था. मुशायरा होता था. जिसमें राष्ट्रीय स्तर के शायर शिरकत करते थे. लेकिन, अब स्थानीय लोगों की अनदेखी और कार्यक्रम में आए महमानों से अभद्रता करने की वजह से बसंत का मुशायरा भी यहां पर नहीं होगा. इतवार की सुबह नजीर अकबराबादी की कब्र पर चादरपोशी की जाएगी. अब ना मेला लगेगा और ना कोई कार्यक्रम यहां पर होगा.
आरिफ तैमूरी का कहना है कि, बीते साल स्मार्ट सिटी में मजार का सौंदर्यीकरण कराया गया था. यहां पर साफ़ सफाई नहीं होती है. जिससे मजार के आसपास कूड़े और आवारा जानवरों का कब्जा रहता है. आज उनकी मजार पर असमाजिक तत्वों का डेरा रहता है.
गौरतलब हो कि सन् 1770 में मशहूर शायर मीर तकी मीर आगरा आए थे. मीर तकी मीर ने नजीर की गजल पर उन्हें शाबाशी दी थी. नजीर की सबसे प्रमुख प्रस्तुति बंजारा नामा बताई जाती है. उन्होंने करीब दो लाख रचनाएं लिखीं. जिनमें से अधिकतर रचनाएं नष्ट हो गईं. अब सिर्फ 6000 रचनाएं बची हैं. जिनमें करीब 600 गजलें शामिल हैं.
करीब 100 साल पहले आगरा में हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए थे. तब आगरा में नजीर अकबराबादी की मजार से एक जुलूस निकाला गया था. जिसमें देश और दुनिया को शांति का पैगाम दिया था.
प्रमुख कृतियां : नज़ीर ग्रन्थावली, नज़ीर ग्रन्थावली-2, समधिन, ऊमस, दिवाली, ईद उल फ़ितूर, रीछ का बच्चा, बचपन समेत अन्य शामिल हैं.