उत्तर प्रदेश

इमाम ए हुसैन को उन के जन्म दिन पर  किया याद


संवाद । शोजब मुनीर


अलीगढ़। अल नियाज एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी के तत्वावधान में इमाम हुसैन (अ.स.) के जन्म दिवस के अवसर पर खानकाह नियाजिया में एक महफ़िल का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा कि पैगंबर के नवासे, कर्बला के शहीद हजरत हुसैन (एएस) के व्यक्तित्व को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है।


पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जीवन और उनके आंदोलन में जो पाठ हैं वह हर व्यक्ति और हर वर्ग के लिए पथप्रदर्शक हैं। दुनिया में बहुत से आंदोलनकारी ऐसे भी गुज़रे हैं जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को अपना आदर्श बनाया और इसे दीपक की भांति अपने सामने रखते हुए आगे बढ़े और अपने आंदोलन को उन्होंनें सफ़ल बनाया।तीन शाबान सन चार हिजरी को पूरी सृष्टि के सबसे महान परिवार में एक बच्चे के जन्म की ख़बर ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के हृदय को हर्ष और आध्यात्मिक उत्साह से भर दिया। नबी ए करीम (स) ने अपने इस नवासे का नाम हुसैन रखा। वह हज़रत अली और हज़रत फ़ातिमा (स.अ) के दूसरे बेटे थे। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए दुनिया में आए।रिवायत है कि जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ, ख़ुदा की ओर से हज़रत जिब्रईल नामक फ़रिश्ता हज़ारों फ़रिश्तों के साथ मुबारकबाद देने के लिए धरती पर उतरे। हुसैन नाम तौरात में शब्बर और शब्बीर है, इंजील में यही नाम ताबा और तैयब है। ‘जन्नत के जवानों के सरदार’ इमाम हुसैन (अ) का लक़ब (उपाधि) है।
पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व में बड़ी महान विशेषताएं थीं। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नवासे थे। उन्होंने अपने जीवन के छह साल पैग़म्बरे इस्लाम (स) की छत्रछाया में गुज़ारे, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के व्यक्तित्व की महानता की छाप इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जीवन पर छह साल तक उनके व्यक्तित्व पर पड़ी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत पढ़ते हैं तो यह महत्वपूर्ण वाक्य आता है कि ऐ मेरे सरदार, ऐ अबू अब्दिल्लाह मैं गवाही देता हूं कि आप पवित्र पूर्वजों के वंशज हैं, अज्ञानता अपनी दूषित प्रवृत्ति के साथ आपके क़रीब भी नहीं आ सकी।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जीवन का एक महत्वपूर्ण बिंदु पैग़म्बरे इस्लाम (स) का उनसे और उनके बड़े भाई हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से बहुत गहरा लगाव था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि हुसैन मुझ से हैं और मैं हुसैन से हूं। ऐ अल्लाह! तू उससे प्रेम कर जो हुसैन से प्रेम करे।

पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा जिस वातारण में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आंखें खोलीं और जहां उनका पालन पोषण हुआ वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) जैसी महान हस्तियों की देखरेख में तैयार हुआ था। इस वातावरण में इमाम हुसैन (स) न्याय, सत्य और साहस जैसे महान शिष्टाचारिक गुणों से सुसज्जित हुए क्योंकि यह गुण हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा में अपने महानतम रूप में मौजूद थे। उन्होंने बचपन से सीखा था कि महान उद्देश्यों के बग़ैर जीवन बेकार है उसका कोई मूल्य ही नहीं है। यदि जीवन में सत्य न हो तो जीवन का कोई अर्थ ही नहीं है। दूसरे शब्दों में इमाम हुसैन (अ) अपने बचपन से ही उस स्रोत से जुड़े हुए थे जिससे महानता और महान गुणों की धारा प्रवाहित होती है। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर वही (क़ुरआनी सूरें) नाज़िल होते थे अर्थात फ़रिश्ता ख़ुदा का संदेश लेकर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पास आता था तो अनेक अवसरों पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ होते थे और उस आध्यात्मिक वातावरण का हिस्सा होते थे। इस तरह वह महानताओं की ऊंचाइयों पर पहुंचते गए। उनकी महानता और गुणों से चाहने वाले ही नहीं बल्कि विरोधी भी अच्छी तरह अवगत थे और इसे मानते भी थे।
पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था, उनकी वाणी में विशेष मधुरता और मिठास थी, वह जब बात करते थे तो उनकी बात लोगों के दिलों में उतरती चली जाती थी। उनकी बातों के प्रभाव से मुर्दा दिल भी जीवित हो उठते थे। बचपन से ही उनका साहस भी उदाहरणीय था वह धर्म और मानवीय सिद्धांतों की रक्षा और इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। इमाम हुसैन (अ) ज्ञान पर भी बहुत अधिक ज़ोर देते थे उनका कहना था कि ज्ञान हासिल करना परिपूर्णता और उत्थान की भूमिका है। अर्थात कोई भी इंसान यदि आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचना चाहता है तो उसके लिए ज़रूरी है कि पहले ज्ञान हासिल करे। वह ख़ुद भी ज्ञान के सागर थे, उनके ज्ञान की गहराई का कोई अनुमान नहीं लगा सकता। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का क़ौल (कथन) है कि हम वह लोग हैं जो क़ुरआन के ज्ञान और उसे बयान करने की दक्षता के स्वामी हैं। हमारे पास जो कुछ है वह किसी भी इंसान के पास नहीं है, हमें ख़ुदाई रहस्यों का ज्ञान है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में ज्ञान और अध्यात्म दोनों को चरम बिंदु पर देखा जा सकता था। उनके व्यक्तित्व में बड़ी कोमलता थी। ग़रीबों से तो उन्हें अथाह प्रेम था और अल्लाह की श्रद्धा बड़े विचित्र रूप में उनके भीतर मौजूद थी। जब वह अल्लाह की उपासना करते थे, जब वह ख़ुदा का गुणगान करते थे तो उनका ख़ुदाई प्रेम बड़े आकर्षक रूप में झलकता था।


पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास को मात्र 50 साल का समय बीता था कि स्वार्थी और सत्ता लोभी लोग, झूठे अत्याचारी और द्वेषी लोग धोखे का सहारा लेकर आम लोगों को धर्म के मार्ग से भटकाने में लग गए। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अच्छी तरह पता था कि यदि सही समय पर इस पर अंकुश न लगाया गया तो असत्य सब को अपने स्वार्थों और लोभ की बलि चढ़ा देगा। उनका यह मानना था कि यदि लोगों को सत्य से दूर कर दिया जाए तब भी सत्य की उमंगें और महान उद्देश्य अपनी जगह पर अडिग रहते हैं और सत्य इतिहास के माथे पर अपनी चमक बिखेरता रहता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन क़ुरआन की उस आयत का दर्पण है जिसमें कहा गया है कि जब दो गुट आपस में युद्ध के मैदान में आमने सामने आ जाते हैं तो इसमें तुम्हारे लिए पाठ है। एक गुट ख़ुदा के मार्ग में युद्ध करता है और दूसरा गुट नास्तिक है। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और यज़ीद, सत्य और असत्य के दो मोर्चों और दो विचारधाराओं के प्रतीक के रूप में एक दूसरे के आमने सामने थे।


पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा इमाम हुसैन (अ) बड़े साहसी, बहुत करुण स्वभाव, दयालु और बड़े विनम्र इंसान थे। वह ग़रीबों और फ़क़ीरों के साथ एक दस्तरख़ान पर बैठकर खाना खाते थे। वह उनकी दावत स्वीकार करते थे और उन्हें अपने यहां खाने पर बुलाते थे। वह क़र्ज़दार लोगों का क़र्ज़ा अदा करते थे, हमेशा पीड़ितों का साथ देते थे। ज्ञान की दृष्टि से वह अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के समान सभी विषयों और क्षेत्रों की पूर्ण जानकारी रखते थे। इतिहास में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की विशेषताओं और गुणों के बारे में बहुत कुछ लिखा और बोला गया है। इमाम हुसैन (अ) के बारे में केवल मुसलमानों ने ही नहीं बल्कि ग़ैर मुस्लिमों ने भी बहुत कुछ कहा और लिखा है। । दूसरे शब्दों में यहां तक कहा जा सकता है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सभी धर्मों की आत्मा हैं और जब तक इतिहास चलता रहेगा वह धर्मों की आत्मा के रूप में अपनी भूमिका अदा करते रहेंगे। इमाम हुसैन (अ) ने जब अपने आंदोलन की शुरुआत की तो उस समय पूरी दृढ़ता के साथ कहा था कि ख़ुदा की सौगंध मैं हरगिज़ घुटने नहीं टेकूंगा, मैं महान लोगों की तरह मौत को गले लगाऊंगा। उन्होंने प्रतिष्ठा और गौरव का सहीह अर्थ समझाया और सभी समझदार और बुद्धिमान लोगों को अपना दीवाना बना लिया।

पीर तरीकत डॉ. अब्बास नियाजी ने कहा आज हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस मना रहे हैं जिनके जीवन, जिनके विचारों, जिनके आंदोलन से हमें सबसे अमर पाठ मिलते हैं। इस महान हस्ती के शुभ जन्म दिवस पर हम यह बात स्वीकार करते हें कि मशीनी जीवन में उलझी हुई मानवता ऐसे काल में जब नैतिक मूल्यों का महत्व लगातार कम होता जा रहा है और उनकी उपेक्षा की जाने लगी है, सौभाग्यशाली है कि उसे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का परिचय मिला है। उसे चाहिए कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पूरे जीवन और उनके आंदोलन को एक बार नहीं बल्कि बार बार पढ़े और उनके उद्दश्य को अपने संघर्ष और अपनी सत्य की लड़ाई के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाएं। वाक़ई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम एक अमर सच्चाई का नाम है जो जीवन के सबसे प्रकाशमान मूल्यों और सिद्धांतों से परिचित करा सकती है।


इस अवसर पर इमाम हुसैन को खिराजे अक़ीदत पेश किया गया । इस अवसर पर हैदर अली नियाज़ी, हाफ़िज़ फ़ुरक़ान नियाज़ी, सफ़दर नियाज़ी, जाफ़र नियाज़ी, हैदर अब्बास नियाज़ी, रोहन नियाज़ी, अली हसनैन नियाज़ी, अली ज़मान नियाज़ी, एबाद नियाज़ी, फ़ख़री अली नियाज़ी, सरवर अज़ीम नियाज़ी, जुनैद नियाज़ी करीम नियाज़ी और अन्य लोग भी उपस्थित थे।