जिंदगी-मौत के हिसाब-किताब की रात शब-ए-बारात अल्लाह को याद करते हैं और उनसे अपने गुनाहों की माफी मांगते है
शब-ए-बारात की रात गुनाहों से माफी की रात रातभर अल्लाह की इबादत करते रहे हाजी तहसीन सिद्दीकी
संवाद।। तौफीक फारूकी
फर्रुखाबाद पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत हाजी तहसील सिद्दीकी कहा शब-ए-बारात कहते हैं, लेकिन सही मायने में इसे शब-ए-बराअत कहा जाना चाहिए. इनमें पहला शब्द ‘शब’ का मतलब रात है, दूसरा बराअत है जो दो शब्दों से मिलकर बना है, यहां ‘बरा’ का मतलब बरी किए जाने से है और ‘अत’ का अता किए जाने से, यानी यह (जहन्नुम से) बरी किए जाने या छुटकारे की रात होती है. इसीलिए शब-ए-बारात को इबादत, फजीलत, रहमत और मगफिरत की रात कहा जाता है.
इबादत की अहम रातों में से एक रात– हाजी तहसीन सिद्दीकी

इस्लाम में कई रातें ऐसी हैं, जो बाकी की सभी रातों से ज्यादा अहमियत रखती हैं. इनमें शब-ए-कद्र की पांच रातें, जो रमजान के तीसरे अश्रे में आती हैं. ये रमजान की 21, 23, 25, 27 और 29 तारीख की रात हैं. इसके अलावा मेअराज की रात और शब-ए-बारात की रात है. इस्लाम में ये सात रातों की अपनी अहमियत और फजीलत है. इन सभी सातों रातों में मुस्लिम समुदाय के लोग पूरी रात अल्लाह की इबादत करते हैं और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं.
शब-ए-बारात के लिए इस्लाम में कहा जाता है कि इस रात को की जाने वाली हर जायज दुआ को अल्लाह जरूर कुबूल करते हैं. इस पूरी रात लोगों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. इसीलिए मुस्लिम समुदाय के लोग रात भर जागकर नमाज और कुरान पढ़ते हैं. इतना ही नहीं मुस्लिम समुदाय के लोग अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाकर उनकी मगफिरत की दुआ करते हैं.
जिंदगी-मौत के हिसाब-किताब की रात शब-ए-बारात
शब-ए-बारात पिछले एक साल में किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली रात होती है. इस रात में पूरे साल के किए गुनाहों का हिसाब-किताब भी किया जाता है और लोगों की किस्मत का फैसला भी होता है. शब-ए-बारात की रात की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हदीस में इसे गुनाहों से निजात पाने और दुआएं कबूल होने की रात बताया गया है. इस रात को अल्लाह अपने बंदों की दुआएं सुनता है, उनकी तकदीर लिखता है और जो सच्चे दिल से तौबा करता है उनके गुनाह माफ करता है.
शब-ए-बारात की रात पर इंसानों की मौत, रिज्क और उनकी जिंदगी के फैसले अल्लाह लिखता है. अल्लाह अपने बंदों के अगले साल की तकदीर का फैसला लिखता है. इस रात को अल्लाह के जानीब से बंदों के लिए रोजी-रोटी, हयात-व-मौत व दिगर काम की सूची तैयार (फेहरिस्त) की जाती है. इसलिए यह रात दुआ करने और अल्लाह से भलाई मांगने के लिए बहुत अहम मानी जाती है. मुस्लिम समुदाय के लोग रात भर जागकर न सिर्फ अपने गुनाहों से तौबा करते हैं बल्कि अपने उन बुजुर्गों की मगफिरत के लिए भी दुआ मांगते हैं, जिनका इंतकाल (निधन) हो चुका होता है. इसीलिए लोग इस मौके पर कब्रिस्तान भी जाते हैं, जहां पर फातिहा पढ़ते हैं.
शब-ए-बारात की रात मगफिरत की रात मानी जाती है. अल्लाह शब-ए-बारात की रात नर्क में यातनाएं झेल रहे मुसलमानों को आजाद करते हैं. इसलिए शब-ए-बारात पर लोग अपने मृत पितरों के कब्रिस्तान जाकर साफ-सफाई करते हैं, फूल चढ़ाते हैं, अगरबत्ती जलाते हैं और प्रार्थना करते हैं. रात भर मुस्लिम समुदाय के लोग मस्जिद और घरों में इबादत करते हैं. मुसलमान अपने पूर्वजों की कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ते हैं और उनकी मगफिरत के लिए दुआ करते हैं.