संवाद।। तौफीक फारूकी
पवित्र रमजान के चांद का दीदार होने के बाद शनिवार से तरावीह का सिलसिला शुरू हो गया. रविवार से पहला रोजा शुरू होगा. शनिवार को रमजान का चांद के दीदार करने के बाद लोगों ने दुआएं कीं. पूरे प्रदेश की सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज अदा की
पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत हाजी तहसीन सिद्दीकी ने चांद का दीदार करने के बाद सभी शहरवासियों को रमजान की मुबारकबाद दी. एक माह तक चलने वाला मुकददस रमजान तीन अशरों में बंटा होता है. उन्होंने बताया कि एक माह तक चलने वाला मुकददस रमजान तीन अशरों में बंटा होता है.
फर्रुखाबाद पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत हाजी तहसीन सिद्दीकी ने बताया कि रमजान में रोजा अहम इबादत है. रमजान अल्लाह का महीना है. इशा की नमाज के बाद 20 रकात तरावीह में कुरान का पूरे माह सुनना जरूरी है. साकिब मुमताज कहते हैं कि जरुरी है कि रोजा रखने वाला इंसान हमेशा बुराई से तौबा करता रहे. इस महीने को बहुत ही मुकद्दस माना जाता है. आम दिनों के मुकाबले रमजान में की कई इबादत का फल 70 गुना अधिक होता है.रमजान का रोजा 29 या 30 दिनों का होता है. इस्लाम धर्म में रोजा रखने के लिए सहरी खाना (रात के आखिरी हिस्से में कुछ खा-पी लेना) मसनून है और हदीस शरीफ में सहरी की बड़ी फजीलत आई है. पैगम्बर साहब का इरशाद है कि यहूद-नसारा और मुसलमानों में यही फर्क है कि वह सहरी नहीं खाते और मुसलमान खाते है. रोजे-सहरी के सदके में ही पूरे रमजान माह में अल्लाह की ओर से हर चीज मे बरकत पैदा कर दी जाती है.साकिब मुमताज के अनुसार, रमजान का पहला रोजा चांद देखने के साथ ही अगली सुबह रखा जाता है. रात को चांद देखने के साथ ही मस्जिदों में तरावीह की नमाज शुरू हो जाती है. सूर्योदय से पहले सहरी का वक्त एक घंटे का दिया जाता है. उस समय में जो भी रोजा रखना चाहता है, वह अपने खाना बनाने की तैयारी में लग जाता है और दिए गए समय से पहले अपना भोजन ग्रहण कर रोजे की शुरुआत करता है. इसके बाद बिना कुछ खाए पिए शाम तक अपने उपवास यानी रोजे को रखता है. सूरज ढलने पर होने वाली अजान के साथ वह अपने रोज को खजूर या नमक की सहायता से रोजे को खोलता है. पूरे 30 दिन यह सिलसिला जारी रहता है.