आज के दिन ही, 4 मार्च 1193 ई. को,अय्यूबी सल्तनत के बानी सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की 55 साल की उम्र में सीरिया की राजधानी दमिश्क में वफात हो गयी थी। उन्हें बुखार का दौरा पड़ा था जिससे वो सेहतयाब न हो सके थे। सलाहुद्दीन अय्यूबी को सलीबी रियासतों के खिलाफ उनकी फौजी मुहीमात के लिए जाना जाता है। उन्होंने बैतुल मुकद्दस (यरुशलम) की फतह समेत कई बड़ी कामयाबियां हासिल की थीं।
किंग रिचर्ड के जाने के कुछ समय बाद ही सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की तबियत बिगड़ी। जिससे फिर वो उभर नहीं पाए और 4 मार्च 1193 ई. को उनकी वफ़ात हो गयी। उनकी वफ़ात के समय उनके पास 1 सोने का सिक्का और 40 चांदी के सिक्के के आलावा कुछ भी नहीं था।
उन्होंने अपनी अज़ीम दौलत अपनी सल्तनत में रहने वाली गरीब रियाया (जनता) को दे दी थी। उन्होंने जनाज़े की रस्म की अदाएगी तक के लिए कुछ नहीं छोड़ा था। उन्हें सीरिया के शहर दमिश्क में उमय्यद मस्जिद के बाहर बगीचे में बने एक मकबरे में दफनाया गया था।

असल में ये मकबरा एक कॉम्प्लेक्स का हिस्सा था जिसमें एक स्कूल और मदरसा अल-अज़ीज़िया भी शामिल था, जिसमें से कुछ स्तंभों और एक अंदौरनी मेहराब को छोड़कर बहुत कम बाकी बचा है। सात सदियों के बाद जर्मनी के शहंशाह विल्हेम ॥ ने मकबरे के लिए एक नया संगमरमर का ताबूत दान किया था, हालांकि असली ताबूत को तब्दील नहीं किया गया था। इसके बजाय मकबरा जो जायरीन के लिए खुला है उसमे अब दो कब्रें (पत्थर का ताबूत) हैं। संगमरमर एक किनारे पर रखा गया है और असल लकड़ी वाला है, जो सलाहुद्दीन अय्यूबी की कब्र को कवर करता है।