उत्तर प्रदेश

रमज़ान के रोज़े 10-शाबान 2-हिजरी को फर्ज किए गए! मुफ्ती नश्तर फारुकी

रोज़े का मक़सदे अज़ीम:- माह-ए-रमज़ान निहायत ही रहमतों, बरकतों का महीना है। इस महीने में नफ़्लों का सवाब फर्ज़ों के बराबर और फर्ज़ों का सवाब सत्तर(70) गुना बढ़ा दिया जाता है। रब त’आ़ला का इरशाद-ए-गिरामी है की रोज़ा मेरे लिए है और मै ख़ुद रोज़े का अजर (बदला) हूँ। माह-ए-रमज़ान में अल्लाह त’आ़ला अपने बंदों को बे-शुमार रहमतों और नेअ़’मतों से नवाज़ता है।


रमज़ान की अहमियत पहली बात यह है कि अगर हमें किसी चीज़ की अहमियत न मालूम हो तो हम उसका फायदा भी नहीं उठा पाते, इसी तरह अगर हम रमज़ान की अहमियत नहीं जान सके तो उसकी फज़ीलत नहीं जान सकेंगे तो उसका फायदा भी हम नहीं उठा पाएंगे, हदीसे पाक में आया है कि ” रमज़ान अल्लाह का महीना है” इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस महीने को अल्लाह से कितना गहरा ताल्लुक़ है ।
इस में एक ऐसी रात आती है जो हज़ार महीनों से अफजल है ।
“रमज़ान” अरबी का लफ़्ज़ है जिसका माना “झुलसा देने वाला” है, इस महीने में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त अपने फ़ज़ल व करम से रोज़े दार बन्दों के गुनाहों को झुलसा देता है यानी मिटा देता है इस लिए इस महीने को “रमज़ान” कहा जाता है।


रोज़े का मक़सद
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुर’आ़न-ए-करीम में फरमाता है कि ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़े फर्ज़ किए गए जैसे तुमसे पिछली उम्मतों पर हमने फर्ज़ किए थे ताकि तुम परहेज़गार हो जाओ-” (सूरह बक्र)


रोज़ा मुसलमानों पर 10-शाबान 2-हिजरी को फ़र्ज़ किया गया जिसका असल मकसद तक़वा (परहेज़गारी) इख़्तियार करना है और अल्लाह पाक ने बार-बार इस फ़रमान को दोहराया कि ऐ लोगों जो ईमान लाए तक़वा (परहेज़गारी) इख़्तियार करो।


ग़ौर करने वाली बात यह है की तक़वा यानी अल्लाह का डर बहुत ही अहमियत वाली चीज़ है, क्योंकि जब इंसान के अन्दर अल्लाह का डर पैदा हो जाता है तो वह हलाल व हराम की तमीज़ करने लगता है और दुनिया पर आख़िरत को तरज़ीह देने लगता है, धोखेबाज़ी, झूठ, ज़िना, गीबत, शराब, जुआ और तमाम बुरी ख़सलतों से एहतियात करने लागता है।
अल्लाह के प्यारे रसूल ने इर्शाद फरमाया: एक रमज़ान से दूसरे रमज़ान के रोज़े रखना इस दरमियान वाकेअ होने वाले तमाम गुनाहों के लिए कफ्फारा बन जाता है जब तक कि इंसान गुनाहे कबीरा(बड़ा गुनाह) न करे। इंसान जब शिकम सेर (भर पेट) होता है तो उसका नफ्स उसे गुनाहों और शरकशी पर उभारता है और जब भूखा-प्यासा होता है तो उसका नफ्स सुस्त और कमज़ोर हो कर गुनाहों से बाज़ रह जाता है, यह भी कहा जा सकता है कि अल्लाह की पाकीज़ा मखलुक फ़रिश्ते न कुछ खाते हैं न पीते हैं और न हमबिस्तरी करते हैं और रोज़ा भी इन्हीं तीनों चीज़ों से सुबहे सादिक से ग्रुबे आफताब तक रूक जाने का नाम है तो गोया अल्लाह ने अपने बन्दों को रोज़े का हुक्म दे कर यह इर्शाद फरमाया कि ऐ मेरे बंदों अगर तुम इन चीजों से परहेज़ कर लोगे तो तुम्हारे अन्दर भी फरिश्तों जैसी पाकीज़ा सिफत पैदा हो जाएगी और तुम भी मेरे फार्मा बरदार बन्दे बन जाओगे ।।