आगरा। हिन्दुस्तान के मशहूर सूफी संत सय्यद असग़र अली शाह रहo का उर्स और ग्यारवीं शरीफ का आयोजन किया गया
आपका वंश पैगम्बर मोहम्मद सल्ललाहो अलैही वसल्लम से मिलता है सूफी संत “चिश्त के दुल्हा” हज़रत सय्यद असग़र अली शाह महान सूफी और शायर अल्लामा हज़रत सय्यद मोहम्मद अली शाह मैकश अकबराबादी के पिता हैं आगरा की सूफी परंपरा मे 400 साल पुरानी खा़नक़ाह ( आध्यात्मिक सूफी केन्द्र) के 9वें गुरू एंव सिलसिला क़ादरिया के महान सूफी गुरू हज़रत सय्यद अमजद अली शाह साहब के तीसरे सज्जादा नशीन उत्तराधिकारी (जानशीन) थे।
आपका जन्म 1865 मे आगरा मे अपने ख़ानदानी हवेली जो किनारी बाज़ार मुहल्ला मेवा कटरा मे है हुआ ये परिवार हमेशा से अध्यिात्म और मानव सेवा के लिये मशहूर रहा है हज़रत सय्यद असग़र अली शाह साहब के दादा सय्यद मुनव्वर अली शाह साहब और उन के बेटे ने आगरा कॉलेज और एस.एन.मेडिकल कॉलेज के लिये दान दिया था आपके ख़ानदान के लोगों ने ज़मीन भी मुहय्या कराई थी सूफी तहज़ीब के मुताबिक़ हमेशा ग़रीबों की मदद के लिये तत्पर रहे अंग्रज़ों के ख़िलाफ ग़रीब हिन्दुस्तानियों की मदद करते थे उन के मुरीदों मे हिन्दु मुस्लिम सब ही शामिल हैं।
आगरा और आगरा वाले पुस्तक मे हज़रत मैकश अकबराबादी लिखते हैं “मेरे वालिद ख़ानदान मे औलाद ए अकबर (बड़े बेटे) और बुज़र्गों के सही जानशीन थे सब ही लोग उन की गैर मामूली इज़्ज़त और हर दिल अज़ीज़ी और जवां मर्दी के किस्से सुनाते हैं और उन्हें याद करके रोते हैं वो गरीबों के साथ नर्म और हुकमरानों के साथ हिम्मत और सख़्ती से पेश आते”-(आगरा और आगरा वाले पेज न. 77,79 )
उन के पिता हुज़ूर मुज़फ्फर अली शाह हिन्दुस्तान के मशहूर सूफी संत थे जिन के शिष्य पुरे हिन्दुस्तान मे थे उन्होने अपनी जगहॉं अध्यात्मिक गद्दी पर आपको आसीन किया सूफियाना भाषा मे इसे रस्मे सज्जादगी कहते हैं (यानि अपना उत्तराधिकारी बनाना) उस समये उन की उम्र 17 साल थी लेकिन सूफी शिक्षा मे पिता ने उन्हें निपुण कर दिया था,उनकी आध्यात्मिकता के सभी क़ायल थे उर्दु के मशहूर इतिहासकार इन्तिज़ाम उल्लाह शहाबी लिखते हैं।
हज़रत सय्यद असग़र अली शाह हज़रत सय्यद मुज़फ्फर अली शाह साहब के बेटे और सज्जादा नशीन थे अध्यात्मिक और सांसारिक ज्ञान दोनों आप मे मौजूद थे रूहानियत के जानने वाले और चमत्कारिक व्यत्तिव वाले लोकप्रिय ,सुरत और सीरत मे कोई उन का सानी नहीं था हिन्दुस्तान के मशहूर शायर ब्यान मेरठी ने और मशहूर सूफी अकबर दीना पुरी और अर्शी काकोरवी ने उनकी शान मे कलाम लिखे हैं
बे आईद बज़्म ए नौशाहे चिश्त
कि दर ख़ूरमी गोये बूरद अज़ बहिश्त
अर्शी काकोरवी
हज़रत अनवार उर्रमान बिस्मिल जयपुरी ने तारीख़ विसाल लिखी जो मज़ार की लौह पर लिख़ी हुई है
“चिश्त के दुल्हा शहे असग़र अली क़ादरी
परतवे ख़ुल्के हसन,इब्ने हुसैन दिलफिग़ार
ग्यारवीं के रोज़ की शब बिस्मिल निगाहों से छिपे
आशिक़े बे चूँ वाहिदो अस्ले परवरदिगार “
सीमाब अकबराबादी ने भी अपनी किताब मे आगरा के सूफियों मे हज़रत सय्यद असग़र अली शाह साहब का जिक्र लिख़ा है.
आगरा के सभी सूफी आपकी बेहद इज़्ज़त और आदर करते थे उन्होंने समाज मे बहुत-सी कूरीतियों को ख़त्म किया. संत हज़रत सय्यद असग़र अली शाह ने सन् 1904 मे विसाल हुआ (देह त्यागा), उस दिन रमज़ान की 11 तारीख़ थी सन् 1905 से ये उर्स मनाया जाता है।

इस साल भी आप का 120वां उर्स शरीफ निहायत आदर अदबो ए एहतराम के साथ दिनांक 12 मार्च 2025 को बुधवार को मनाया गया, कुरान-ख़व्वानी 3:30 बजे हुईं महफिल कव्वाली शाम 5 से 6:15 बजे तक हुई उसके बाद रंग की महफिल हुई और रोज़ा इफतार और लंगर कराया गया,सज्जादा नशीन मखदूम पीर सैय्यद अजमल अली शाह चिश्ती क़ादरी जाफरी ने दुआ की देश मे सौहार्द के लिये,दर्शन करने वालों एंव उर्स मे शिरकत करने वालों के परेशानियों के लिये ख़ासकर रोज़ा खोलने से पहले दुआ हुई.
महफिल ए रोज़ा इफ़्तार मे शहर के सैकड़ों लोगों ने अक़ीदतो अदब से शिरकत की ख़ानक़ाह ए क़ादरिया नियाज़िया आस्ताना ए हज़रत मैकश शाह कॉम्पलैक्स मेवा कटरा आगरा।