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23 मार्च शहीद दिवस

इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मज़बूत होता है, अदालत में अपील से नहीं.”

ये जवाब था शहीद भगत सिंह जी का जब उनसे जेल में एक क्रांतिकारी भीमसेन सच्चर ने उनसे पूछा, “आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया।”

भगत सिंह को फांसी दिए जाने से दो घंटे पहले प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे। मेहता ने बाद में लिखा कि ‘भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे.’ मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बगैर कहा, “सिर्फ़ दो संदेश… साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और ‘इंक़लाब ज़िदाबाद!”

इसके बाद भगत सिंह ने मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी. भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे।

मेहता के जाने के थोड़ी देर बाद जेल अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों को बता दिया कि उनको वक़्त से 12 घंटे पहले ही फांसी दी जा रही है। अगले दिन सुबह छह बजे की बजाय उन्हें उसी शाम सात बजे फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।

भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफ़ाई कर्मचारी बेबे से दरख्वास्त किया था कि वो उनके लिए उनको फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना लाएं। लेकिन बेबे भगत सिंह की ये इच्छा पूरी नहीं कर सके, क्योंकि भगत सिंह को बारह घंटे पहले फांसी देने का फ़ैसला ले लिया गया और बेबे जेल के गेट के अंदर ही नहीं घुस पाया।

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनो क्रांतिकारियों को वक़्त से पहले आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को फांसी के लिए ले जाया गया फांसी से पहले भगत सिंह ने इतनी ज़ोर से ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाया कि उनकी आवाज़ लाहौर सेंट्रल जेल के बाहर तक सुनाई दी थी।