क्या आजम खान के पूरे परिवार को लेकर योगी आदित्यनाथ का रुख बदल गया है?
2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले ही प्रदेश का सारा सियासी समीकरण बदलने वाला है। जिसे कभी मिट्टी में मिलाने की बात सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ कहते नहीं थकते थे, उन पर अब वो मेहरबान नजर आ रहे हैं। आजम खान के पूरे परिवार को लेकर क्या योगी आदित्यनाथ का रुख बदल गया। क्या वाकई आजम खान जेल से बाहर आने वाले हैं। क्या वाकई आजम खान के जेल से बाहर आने की सारी अड़चनें और रुकावटें दूर हो गई हैं। क्या जेल से बाहर आने के बाद आजम खान कुछ ऐसा करने वाले हैं जो योगी आदित्यनाथ के लिए एक बहुत बड़ा समर्थन और सपोर्ट हो सकता है। ये सारे सवाल इन दिनों यूपी की फिजाओं में अटकलों के बाजार को गर्म कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य आजम खान और उनके पूरा परिवार पर बीते कुछ सालों में करीब 80 मुकदमे दर्ज हुए। उनके बेटे अब्दुला आजम पर 36 से ज्यादा मुकदमे हैं। उनकी पत्नी, उनकी बहन, उनके बड़े बेटे यानी की हर कोई पर मुसीबतों का पड़ाड़ टूटा और कईयों को जेल की हवा खानी पड़ रही है। मगर हाल के कुछ घटनाक्रमों पर गौर करें इससे पहले आजम खान को एक मामले में बेल मिलती है, लेकिन दूसरे अन्य केस की वजह से वो जेल से बाहर नहीं निकल पाते।
लगातार आजम परिवार को मिल रही राहत
एक महीने पहले आजम खान के बेटे अब्दुला आजम को बेल मिल गई और वो बाहर निकल कर आ गए। उसके आजम खान की पत्नी तंजिन फातिमा और उनके बड़े बेटे आदिब, आजम खान की बहन निकहत सारे लोग अंतरिम बेल पर थे। लेकिन सभी को रेगुलर बेल मिल चुकी है। यानी अंतरिम बेल पर रहने से जो गिरफ्तारी की तलवार उनके सिर पर लटक रही थी वो हट चुकी है। आजम खान के जेल से छूट कर बाहर आने की रास्तों की रुकावटें धीरे धीरे करके दूर हो रही हैं। ये अदालत का मामला है। अदालतें ही मामले की सुनवाई करती हैं और बेल या बरी या फिर सजा पर फैसला लेती हैं। लेकिन सबूतों, तथ्यों के आधार पर ये फैसले लिए जाते हैं। अदालत दोनों पक्षों से पूछती है और अगर एक पक्ष सख्ती से खड़ा होता है खासकर सरकार की तरफ से तर्क पेश किए जाते हैं। फिर अदालत उन तर्कों के आधार पर फैसला लेती हैं। लेकिन अगर सरकार का पक्ष नर्म रहे, जमानत का विरोध न किया जाए तो अदालतों में जमानत मिलने की प्रक्रिया में आसानी होती है। सूत्र बताते हैं कि आजम खान और यूपी सरकार के बीच अब रिश्तें बेहतर हो रहे हैं और यही वजह है कि पिछले दो तीन महीनों से आजम खआन और उनके परिवार को मुकदमों से लगातार राहत मिल रही है।
मुकदमों में सरकार की तरफ से पैरोकारी धीमी हो गई
आजम खान की जौहर यूनिवर्सिटी में जो सरकारी जमीन सरकार में निहित हुई थी। उस मामले में भी योगी सरकार अब लंबे समय से खामोश है। कोई एक्शन नहीं लिया गया है। इतना ही नहीं आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम के दो पैन कार्ड, दो पासपोर्ट और दो जन्म प्रमाण पत्र के मुकदमों में भी सरकार की तरफ से पैरोकारी धीमी हो गई है। सपा से आजम खान के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। पिछली दफा जब आजम खान जेल से बाहर आने वाले थे तो उनके करीबियों ने दावा किया था कि आजम खान पार्टी से अलग हो जायेंगे लेकिन अखिलेश यादव ने उनके करीबी दो करीबी लोगो को विधान परिषद और उनके केस लड़ रहे वकील कपिल सिब्बल को राज्य सभा भेज कर आजम खान को मना लिया था।
2027 के लिए बीजेपी की क्या है रणनीति
जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह केंद्र की राजनीति में आए। जब 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा जा रहा था। उसी वक्त से अमति शाह और मोदी कहते रहे कि यूपी में तुष्टीकरण की राजनीति चलती रही। मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, आजम खान का नाम इनमें प्रमुखता से लिया जाता रहा। दो मिट्टी में मिल कर ऊपर चले गए और आजम खान लंबे समय से सलाखओं के पीछे हैं। ऐसे में अचानक से आजम खान को लेकर अटकलों का बाजार क्यों गर्म हो गया है? राजनीति में रिश्ते बदलते रहते हैं और जो आपका पक्का दोस्त वो कल आपका दुश्मन भी बन सकता है और जो आज दुश्मन है वो दोस्त भी बन सकता है। ऐसे में बीजेपी को लगता है कि अगर आजम खान यूपी में अखिलेश यादव के विरोध में चुनाव लड़ेंगे तो साल 2027 में बीजेपी फिर से सत्ता पाने में आसानी होगी। इसके बदले आजम खान को थोड़ी राहत देने में कोई घाटे का सौदा नहीं है। अगर आजम खान अखिलेश यादव की सपा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे तो फिर सपा को भारी नुकसान होगा जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा।
साभार। प्रभासाक्षी