उत्तर प्रदेश

रमज़ानुल मुबारक का आखिरी अशराl बेशुमार बरकतों का हामिल: मुफ्ती नश्तर फारुक

रमज़ानुल मुबारक का आखिरी अशरा बेशुमार फ़ज़ीलतों, बरकतों वाला है, ये मगफ़िरत यानी गुनाहों की बख़्शिश का अशरा कहलाता है, आखिरी अशरा अल्लाह की खुसूसी रहमत व बख़्शिश हासिल करने का मौक़ा देता है, इस अशरे में मुसलामान अपने और मरहूमीन की बख़्शिश अल्लाह की बारगाह में दुआ करते हैं, अपने गुनाहों से तौबा करते हैं, अज़ाबे कब्र और जहन्नम से निजात तलब करते हैं,
शबे कदर की फ़ज़ीलत
शबे कदर ही वह बाबरकत रात है जिस में अल्लाह ने कुरआन करीम नाज़िल फ़रमाया l
अल्लाह ने किसी मसलिहत के तहत “शबे क़दर” को बन्दों से पोशीदा रखा है, इसलिए यक़ीनी तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि कौन सी रात “शबे क़दर” है, फिर भी अक्सर मुफ़स्सिरीन ने रमज़ान की 27 वीं शब को “शबे क़दर” करार दिया है l
पैगंबरे इस्लाम ने इस अशरे की ताक रातों यानी 21,23,25,27 और 29 में को शबे क़दर को तलाश करने का हुक्म फरमाया है l
बुजुर्गाने दीन लिखते हैं कि रमज़ान में रोज़ों की बरकत से गुनाहे सगीरा माफ़ हो जाते हैं, तरावीह की बरकत से गुनाहे कबीरा हल्के हो जाते हैं और शबे कदर की बरकत से दर्जे बुलंद हो जाते हैं l
आखिरी अशरे की एक खसूसियत ये भी है कि 21 वीं रमज़ान से कुछ मुसलामान एतेकाफ़ की नियत से मस्जिदों में क्य़ाम करते हैं जहाँ अपना सारा वक़्त अल्लाह की इबादत व रियाज़त, औराद व वजाइफ़ और तिलावते कुरआन में गुज़ारते हैं जिसकी बरकत से सारा शहर साल भर तक अमन व अमान मैं और ब्लाओं से महफ़ूज़ रहता है l
-मुफ्ती अब्दुर्रहीम नश्तर फारुकी, मरकज़ी दारुल इफ़्ता, दरगाह आला हज़रत, बरेली शरीफ