उत्तर प्रदेश

ईद की “सौगात” नहीं, इंसाफ़ और सम्मान की बहाली चाहिए की मांग का हाजी मुहम्मद तौफीक कुरैशी का समर्थन


वाराणसी । ईद की “सौगात” नहीं, इंसाफ़ और सम्मान की बहाली चाहिए – मुस्लिम समुदाय की मांग को प्रदेश सचिव हाजी मोहम्मद तौफीक कुरैशी का समर्थन मिला है।मुस्लिम समुदाय की ओर से आज यह साफ संदेश दिया जा रहा है कि हमें ईद के मौके पर “सौगात-ए-मोदी” के नाम पर दिखावटी तोहफों की कोई दरकार नहीं है। हमारी मांग है इंसाफ़, बराबरी और शहरी सम्मान की बहाली।

इस मांग को वाराणसी उत्तरी 388 निवासी और पूर्व जिला चेयरमैन हाजी मोहम्मद तौफीक कुरैशी ने भी अपना पूर्ण समर्थन दिया है। हमें अपने हाकिम से राशन की मामूली खैरात, कफन का लिबास या सस्ते तमाशों की उम्मीद नहीं है। हम चाहते हैं कि हमारा शहरी सम्मान बरकरार रहे, हमारी पहचान को गर्व से जीने का हक मिले और हमारे खिलाफ फैलाई जा रही मज़हबी नफरत व कट्टरपन की जहरीली हवा से हमें हिफाज़त दी जाए।अगर सत्ता सचमुच हमारे यकीन को जीतना चाहती है और हमारी तरक्की के लिए कोई मुसब्त कदम उठाना चाहती है, तो सबसे पहले पिछले ग्यारह सालों में फैलाई गई इस नफरत की आग को बुझाए। यह हमारे लिए ईद का सबसे बड़ा और सच्चा तोहफा होगा। “मोदीमित्र” के राशन किट, साड़ियों या खजूर के पैकेटों से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हमारे शहरी सम्मान को ठेस न पहुंचे और हमारे दस्तूरी हुकूक की हिफाज़त का ठोस भरोसा दिलाया जाए। हाजी मोहम्मद तौफीक कुरैशी ने कहा, “यह वक्त सिर्फ तोहफों का नहीं, बल्कि हक और सम्मान की लड़ाई का है।”हम पूछते हैं—क्या यह सौगात उन मुसलमानों के लिए है, जिन्हें सभ्य हिंदू समाज के सामने दहशत का सबब बनाकर पेश किया गया? जिनके बारे में कहा गया कि ये मंगलसूत्र छीन लेंगे, दो भैंसों में से एक भैंस लेकर भाग जाएंगे? क्या ये वही मुसलमान हैं, जिन्हें उनके कपड़ों से पहचानने की बात कही गई, जिनके “सैकड़ों बच्चे” होने का इल्ज़ाम लगाया गया? क्या यह वही कौम है, जिसे बार-बार निशाना बनाकर उनकी इज़्ज़त को तार-तार करने की कोशिश की गई?हर रोज़ हमारी रूह पर मज़हबी नफरत और कट्टरपन का तमाचा पड़ता है। हर दिन हमें अपमान, तंज़ और ज़ुल्म का सामना करना पड़ता है। फिर एक दिन के लिए दिखावटी दुलार का ढोंग रचाया जाता है, और उसी पल कहीं हमारे आशियानों पर बुलडोज़र का कहर बरपाया जाता है। हमारे घरों को ढहाया जा रहा है, हमारी जायदाद को निशाना बनाया जा रहा है, हमें गद्दार, दंगाई और दहशतगर्द जैसे अलफाज़ों से नवाज़ा जा रहा है। हमारी वक्फ संपत्तियों को हड़पने के लिए पार्लियामेंट में कानून बनाए जा रहे हैं। मुगलों की तारीख को बहाना बनाकर हम पर हमले किए जा रहे हैं। हमारे नौजवानों को दंगाई करार देकर जेल की सलाखों के पीछे डाला जा रहा है। खुलेआम मंचों से हमारे कत्लेआम की तकरीरें दी जा रही हैं।हमारी मांग साफ है—अगर मोदी जी और उनकी सरकार सचमुच देश के मुसलमानों के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो सबसे पहले इस मज़हबी कट्टरपन और नफरत की सियासत को खत्म करें, जो हमारे खिलाफ एक साज़िश की तरह फैलाई जा रही है। आपके दल की रियासती हुकूमतें हमारे मज़हबी स्थानों, इबादतगाहों और मस्जिदों पर बुलडोज़र चला रही हैं। हमारे मदरसों को गैर-कानूनी ठहराकर उन्हें बंद करने की साज़िशें रची जा रही हैं। हमारे खिलाफ इक़्तेसादी बॉयकॉट को बढ़ावा दिया जा रहा है। हमारे बाज़ारों, हमारी रोज़ी-रोटी और हमारी ज़िंदगी को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे में हम आपके जुल्म-ओ-सितम पर आंसू बहाएं या इस नकली उदारता पर मुस्कुराएं? सत्ता के इतने सालों के ज़ुल्म और नाइंसाफी के बाद हम आपको अपना हितैशी कैसे मानें? आपके वादों पर यकीन कैसे करें?

हाजी मोहम्मद तौफीक कुरैशी ने इस पर जोर देते हुए कहा, “सत्ता को चाहिए कि वह नफरत की सियासत छोड़कर इंसाफ़ की राह अपनाए।”आज तक हमने क्या नहीं देखा? गिरफ्तारियां, मॉब लिंचिंग में सैकड़ों अखलाकों की बेरहम हत्याएं, शरीयत में दखल, हर मस्जिद पर हमले, अज़ान को खामोश करने की कोशिशें, मदरसों पर ताले, दंगों में हज़ारों बेगुनाहों की जानें, और बड़े-छोटे सभी लीडरों की ज़ुबान से मुसलमानों के लिए लाखों गालियां। इस्लाम को बदनाम करने की कोशिशें हमारी तहज़ीब और पहचान पर रोज़ाना हमले हैं।और इसके बदले में क्या दिया जाता है? एक कुर्ता-पायजामा, एक सलवार-सूट, खजूर का पैकेट, देसी घी का डिब्बा, चीनी का पैकेट और थोड़ी सी सेवइयां—कुल मिलाकर पांच हज़ार रुपये का एक डिब्बा। यह “सौगात” नहीं, बिन मांगी हुई भीख है। यह हमारे ज़ख्मों पर मरहम नहीं, नमक छिड़कने का बहाना है। यह दुनिया के सामने अपनी कालिख से सने चेहरे को साफ करने की सस्ती कोशिश है।हम मुस्लिम समुदाय की ओर से, जिसमें वाराणसी उत्तरी 388 निवासी पूर्व जिला चेयरमैन हाजी मोहम्मद तौफीक कुरैशी भी शामिल हैं, ऐलान करते हैं—अगर हममें ज़रा भी गैरत, इज़्ज़त और हिम्मत बाकी है, तो इस भीख को सप्रेम गुलाब के साथ वापस करेंगे। हम अपने ज़ख्मों पर मिर्च नहीं, मरहम की उम्मीद रखते हैं। यह वक्त सत्ता की नकली हमदर्दी को कबूल करने का नहीं, बल्कि अपने हुकूक और अपनी आवाज़ को बुलंद करने का है। हम अपने सम्मान को हर हाल में बरकरार रखेंगे, क्योंकि यह सौगात नहीं, बल्कि एक छलावा है, जो हमारी तकलीफों का मज़ाक उड़ाता है।