आज के दिन ही 14 अप्रैल 1944 को आज़ाद हिंद फौज के सैनिक कर्नल शौकत अली मलिक ने पहली बार भारतीय ज़मीन में भारत का झंडा फहराया था। कर्नल मलिक ने कुछ मणिपुरी और आज़ाद हिंद फ़ौज के साथियों की मदद से मणिपुर स्थित मोईरांग नामक जगह को अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्त करवा कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। कर्नल शौकत अली मलिक आज़ाद हिन्द फ़ौज के बहादुर रेजिमेंट को लीड कर रहे थे।
मोईरांग विजय पर आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिक कर्नल महबूब अहमद ने अपनी डायेरी में लिखते हैं: ‘मोरंग’ की धरती पर हिन्दुस्तानी परचम लहराने की खुशक़िस्मती हासिल हुई थी शौकत मलिक को. यह विजय हमारे संघर्ष की बहुत बड़ी उपलब्धि थी. ‘मोईरांग’ की धरती पर ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ ने पहली बार अपनी हुकूमत क़ायम की थी. 21 दिनों तक ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ की चलने वाली इस हुकूमत की घोषणा लगातार कई दिनों तक रेडिओ टोक्यो एवं रेडिओ ताशकंद द्वारा की जाती रही.
‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ के जवानों के हौसले और कामयाबी को देखकर नेताजी ने रेजिमेंट के जवानों को संबोधित करते हुए कहा था-“बहादुरों, यदि तुम इसी तरह डटे रहे तो वह दिन दूर नहीं जब लाल किला भी तुम्हारी विजय पताका का अभिवादन स्वीकार करेगा.”
नेताजी के इस सिंहनाद ने हमारी जवान रगों में खून की रफ़्तार तेज़ कर दी थी. हमारे हौसले बुलंद थे. हम जवानों ने एक स्वर में उन्हें विश्वास दिलाया था आप जो चाहते हैं वही हमारा फ़र्ज़ है, आप का हुक्म सर आँखों पर.
‘मोईरांग’ विजय के इस अवसर पर नेताजी ने कर्नल शौकत मल्लिक की बहादुरी को सम्मानित करते हुए ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ की ओर से उन्हें विशिष्ट तगमा प्रदान किया था.
यकीनन वह एक ऐतिहासिक दिन था. नेताजी द्वारा दिए गए इस स्नेह और सम्मान ने उनकी शख्सियत को अहम् दर्जा दे दिया गया था. उस दिन हम जवानों को पहली बार लगा कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उस इंसान का नाम है जो अपने फ़र्ज़ के लिए जितना हिम्मतवर, दिलेर और कठोर हैं अपने साथियों की हिम्मत और बहादुरी को इज्ज़त और प्यार देने में उतना ही फ़राख दिल. आज भी मैं पूरे यक़ीन के साथ कह सकता हूँ कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस में उम्दा लीडरशिप क्वालिटी इस क़दर कूट-कूट कर भरी थी कि ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ के मुट्ठी भर जवान अँगरेज़ हुकूमत से हर वक़्त लोहा लेने को तैयार थे.
‘मौईरांग’ विजय के बाद आज़ाद हिन्द फ़ौज का हौसला और ज़्यादा बुलंद हो चुका था. और फिर शुरु हुआ ‘आज़ाद हिन्द सरकार’ का दौर.