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डॉ भीमराव अंबेडकर जयंती पर जानिए उनके अनसुने किस्से करिए ख़बर क्लिक

आगरा। डॉ भीमराव अंबेडकर जन्मोत्सव अवसर पर उनकी यादों के झरोखों से एक किस्से को बयान करते हुए राष्ट्रीय बौद्ध जनमोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजकुमार सिंह एडवोकेट ने बताया कि 31 जुलाई 1956 को बाबा साहब अपने अन्तिम दिनो में अकेले रोते हुऐ पाये गये थे। बाबा साहब के PA नानक चंद रत्तू ने पूछा बाबा साहब आप क्यों रो रहे हो ?

तो बाबा साहब ने कहा कि रत्तू मैं इस करवां को बड़े कष्ट और मुसीबतों से यहाँ तक ला पाया हूँ अगर मेरे अनुयायी इस कारवां को आगे न लेजा सके तो इसे पीछे भी नही जाने देना चाहिए। इसे यही छोड़ दें…

लेकिन मुझे बड़ा दुःख होता है कि हम इसे आगे तो नही लेकिन पीछे जरूर लेजा रहे है…बाबा साहब ने भारतीय संविधान के आर्टिकल में जो लिखा है वो मैं एक कविता के माध्यम से बताना चाहूँगा जो इस प्रकार है।कि कही अधिकार की बातें कही सत्कार की बातें वाह क्या खूब लिखी है भीम ने प्यार की बातें
और युही आशा नही पाया मैंने सम्मान जीवन का।
कही संघर्स के वो दिन और कही संघर्स की राते।


बाबा साहब का एक बहुत प्यारा बेटा था राजरत्न और उसी दिन उन्हें प्रथम गोल मेज सम्मलेन में जाना था तो बाबा साहब के भाई आये और बोले कि भीमा तू कहाँ जा रहा है तेरे बेटे की म्रत्यु हो गयी है तो पता है बाबा साहब ने क्या कहा अपने भाई से ? बाबा साहब ने कहा की अगर मैं आज लन्दन नही पहुँचा तो ये मनुवादी हमारे गरीब दलित शोषित लोगो के अधिकारो की हत्या कर देंगे मैं एक बेटे के लिए अपने करोड़ों बेटों को नही मार सकता ।
कि बाबा भीम के जीवन का ये कैसा फ़साना है
कि घर मरी लाश बेटे की और उन्हें लन्दन को जाना है
बड़ी मुश्किल से आया है यहाँ तक कारवाँ यारो
इसे जाने ना दो पीछे इसे आगे ले जाना है

मैं राजकुमार सिंह “एडवोकेट’
अपने समाज की सच्चाई बताऊ अगर कभी मौका मिले तो जाना छत्तीस अर्ली रोड पर उनकी जो कोठी है देखना और वह पढ़ना फिर पता चलेगा की बाबा साहब के दोनों पैर लटके रहते थे और नीचे आग जलते रहती थी ताकि हो पैरों में दर्द न हो।

बाबा साहब डॉ अम्बेडकर से जब काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिऐ गया, तब कमीशन का सवाल था कि, आपने सारी जिन्दगी पिछङे वर्ग के ऊत्थान के लिऐ लगा दी… आपकी राय मे इनके लिऐ क्या किया जाना चाहिए..?

बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर पिछङे वर्ग का ऊत्थान करना है तो इनके अन्दर बडे-2 ओहदे बाले लोग पैदा करो…

काका कालेलकर यह बात समझ नही पाये…उन्होने फिर सवाल किया ” बङे लोगो से आपका क्या तात्पर्य है?” बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर किसी समाज मे 10 डॉक्टर, 20 वकील और 30 इन्जिनियर पैदा हो जाऐ, तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीँ सकता।”

इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 मे आगरा के रामलीला मैदान मेँ बोलते हुऐ बाबासाहब ने कहा
“मुझे पढे लिखे लोगोँ ने धोखा दिया मै समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगे, मगर मै देख रहा हुँ कि, मेरे आस-पास बाबुओ की भीङ खङी हो रही है, जो अपना ही पेट पालने मे लगी है।”

यही नही बाबासाहब अपने अन्तिम दिनो मे अकेले रोते हुऐ पाये गये…जब वे सोने की कोशिश करते थे, तो उन्हें नीद नही आती थी….अत्यधिक परेशान रहते थे… परेशान होकर उनके स्टेनो नानकचंद रत्तु ने बाबासाहब से सवाल पुछा कि,

आप इतना परेशान क्यो रहते है? उनका जवाब था,
“नानकचंद, ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो इस अकेली दिल्ली मे 10,000 कर्मचारी, अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है जो कुछ साल पहले शून्य थे… मैने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया, अपने लोगो मे पढे लिखे लोग पैदा करने के लिए….क्योँकि, मै समझता था कि, मै अकेला पढकर इतना काम कर सकता हुँ, अगर हमारे हजारो लोग पढ लिख जायेगे, तो इस समाज मे कितना बङा परिवर्तन आयेगा…

मगर नानकचंद, मै जब पूरे देश की तरफ निगाह डालता हूँ तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नही आता है, जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सके…नानकचंद, मेरा शरीर मेरा साथ नही दे रहा है…जब मैं मेरे मिशन के बारे मे सोचता हूँ, तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है।”

जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेट चढा दिये..जिसने पूरी जिन्दगी यह विश्वास किया कि, पढा लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाईयो को आजाद करवा सकता है…लेकिन आज नौकरी करने वालो मे ज्यादातर लोगो कां ध्यान समाज के लोगो से हट गया है जिनको कि अपने लोगों को आजाद करवाने का मकसद अपना मकसद बनाना था।

लेख

राजकुमार सिंह “एडवोकेट”
अध्यक्ष- अखिल भारती बौद्धिक
जनमोर्चा
सदस्य – रेलवे सलाहकार समिति
आगरा कैंट आगरा