आगरा के पहले मेंटल हेल्थ कार्निवल के दूसरे दिन मानसिक स्वास्थ्य में संगीत का प्रभाव विषय पर हुई कार्यशाला
काशी विद्यापीठ के डॉक्टर दुर्गेश उपाध्याय ने संगीत के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सा के बारे में विस्तार से बताया
मानसिक स्वास्थ को समर्पित संस्था फीलिंग्स माइंड्स विमल विहार, सिकंदरा− बोदला रोड में चल रहा है कार्निवल

- डॉ दुर्गेश उपाध्याय बोले, प्रभावी, सस्ता और सुलभ इलाज संभव है संगीत की थेरेपी द्वारा, नहीं होता कोई साइड इफेक्ट
आगरा। निष्क्रिय रूप से अपने पसंदीदा गाने सुनें या गायन या वाद्ययंत्र बजाकर संगीत बनाने में सक्रिय रूप से शामिल हों, संगीत हमारे सामाजिक-भावनात्मक विकास और समग्र कल्याण पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। उदास मन भी उस वक्त मुस्कुरा उठता है जब उत्साह से साजी संगीत की धुन सुनता है। मानसिक स्वास्थ्य पर संगीत के प्रभाव पर ये व्याख्यान दिया काशी विद्यापीठ के डॉ दुर्गेश उपाध्याय ने।
विमल विहार, बोदला सिकंदरा रोड पर स्थित फिलिंग्स मन संस्था के कार्यालय में आयोजित किए गए सात दिवसीय मेंटल हेल्थ कार्निवल में प्रतिदिन विभिन्न विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य पर कार्यशालाएं ले रहे हैं। इसी कड़ी में सोमवार को काशी विद्यापीठ के डॉ दुर्गेश उपाध्याय ने कार्यशाला को संबोधित किया।

उन्होंने कहा कि आज 21 वीं सदी के तीसरे दशक में ही मानसिक एवं संवेगात्मक समस्यायें विकराल रूप ले चुकी हैं। आने वाले वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु हमें ऐसे चिकित्सकीय विधियों की आवश्यकता पड़ने वाली है जो प्रभावी, सस्ते, सुलभ तथा बिना किसी साइड इफेक्ट के हों। संगीत द्वारा मानसिक विकारों की चिकित्सा ऐसी ही एक चिकित्सकीय विधा है, जिसे पाश्चात्य देशों में एक वैकल्पिक एवं पूरक चिकित्सा के रूप मान्यता प्राप्त है। अब हमारे देश में भी अपनी इसी विलुप्त होती जा रही चिकित्सा विधि द्वारा इलाज किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि म्यूजिक थेरेपी का अर्थ संगीतज्ञ बनना नहीं होता। अभिव्यक्त करने की कला प्रत्येक व्यक्ति में विकसित होने ही चाहिए और संगीत इसका सबसे बेहतरीन प्लेटफार्म है।
अब तो बड़े-बड़े अस्पताल में भी ऑपरेशन के दौरान मंत्रों की धुन चलाई जाती है। गौशालाओं में भी भजन इत्यादि चलते हैं। संगीत का प्रभाव मानव हो या पशु सभी पर सकारात्मक ही पड़ता है।
डॉ दुर्गेश ने अपने मधुर कंठ से संगीतमय प्रस्तुति देकर कार्यशाला को संगीत की तरंगों से परिपूर्ण कर दिया।
संस्था की संस्थापक एवं निदेशक अंतर्राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक डॉ चीनू अग्रवाल ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए आगरा में इस तरह का पहला मेंटल हेल्थ कार्निवल संस्था द्वारा आयोजित किया गया है। अक्सर लोग मानसिक स्वास्थ्य का संबंध पागलपन से लगा लेते हैं जबकि यह सत्य नहीं है। यह भी एक बीमारी है जिसे छुपाना नहीं बताना चाहिए, क्योंकि बताने से इलाज संभव है। शारीरिक बीमारियां बाह्य रूप से दिख जाती हैं किंतु मानसिक बीमारियां अंदर ही अंदर व्यक्ति को खा जाती है। यदि घर में एक भी मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति है तो पूरा परिवार उससे प्रभावित होता है इसलिए समय रहते खुलकर बोले और खुलकर जिएं। उन्होंने कहा कि संगीत प्रकृति में हर हर तरफ है लेकिन जीवन के शोर में हम संगीत को हो चुके हैं। जीवन की आपाधापी के बीच में यदि संगीत के तार थोड़े भी हम छेड़ दें तो सुकून आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
शास्त्रीय संगीत गायिका प्रतिभा तालेगांवकर ने कहा कि संगीत जीवन है और जीवन से ही संगीत है। ध्वनि सूर्य के प्रकाश की किरण से भी पतली होती है। शास्त्रीय संगीत यदि सिर्फ सुनेंगे ही तो जीवन को तनाव से मुक्त आसानी से कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि यह शोध में साबित हो चुका है कि कोमा के मरीज को यदि समय अनुसार संगीत के राग कान के पास रखकर सुनाए जाएं तो उस पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डॉ रणवीर त्यागी ने कहा कि बच्चों के लिए गाना न केवल मां-बच्चे के बीच के बंधन को बढ़ाता है, बल्कि शिशुओं में तनाव को कम करने के लिए भी जाना जाता है । जब हम चिंतित होते हैं तो संगीत हमें शांत करता है और जब हम उदास होते हैं तो हमारा उत्साह बढ़ाता है।
इसलिए जीवन में संगीत स्वयं को खुश रखने के लिए शामिल करें।
संस्था के सह संस्थापक डॉ रविंद्र अग्रवाल ने बताया कि 15 अप्रैल को लेखिका पल्लवी नियोजी चित्रकारी से जीवन में खुशियों के रंग भरना सिखाएंगी।
कार्यशाला में मध्य प्रदेश नोएडा लखनऊ आदि स्थानों से भी लोग पहुंचे। अपर्णा, पूनम चौहान आदि उपस्थित रहीं।