आगरा। हाल ही में आगरा में दलित समाज की एक बारात पर जातिवादी और सामंती मानसिकता से ग्रस्त तत्वों द्वारा की गई हिंसा की घटना ने न केवल स्थानीय समाज को झकझोर दिया है, बल्कि यह इस बात का भी संकेत है कि आज भी समाज के कुछ हिस्सों में बराबरी और सम्मान को लेकर गहरी असहिष्णुता मौजूद है।
यह कोई एकमात्र घटना नहीं है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं जहाँ गरीबों, दलितों और वंचित वर्गों पर अन्याय और ज़्यादती की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, विशेष रूप से तब जब संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक न्याय की बातें केवल काग़ज़ों तक सीमित रह जाएं।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के शासनकाल की बात करें तो उस दौर में सरकार ने अन्याय के खिलाफ दलितों, पिछड़ों और वंचित वर्गों के साथ खड़े होने का मजबूत संदेश दिया था। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि आज की सरकारें इन घटनाओं पर कितनी संवेदनशील हैं और पीड़ितों को समय पर न्याय दिलाने में कितनी गंभीरता दिखा रही हैं।
जरूरत है कि शासन-प्रशासन ऐसी घटनाओं पर त्वरित और सख्त कार्रवाई करे, ताकि समाज में यह संदेश जाए कि कानून सबके लिए समान है और किसी भी जातिगत पूर्वग्रह को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही, सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों को भी इस प्रकार की मानसिकता के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।