जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा की याचिका पर सुनवाई, केंद्र से मांगा जवाब
नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा की जनहित याचिका पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने अधिनियम के तीन प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है।
कोर्ट की चिंता के मुख्य बिंदु:
प्राचीन वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण: कोर्ट ने पूछा कि वे ऐतिहासिक मस्जिदें, जिनके पास पंजीकरण या दस्तावेज़ नहीं हैं, उन्हें नए कानून में कैसे शामिल किया जाएगा?
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य: पीठ ने अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा कि धार्मिक मामलों के संचालन में बाहरी हस्तक्षेप असंवैधानिक हो सकता है।
सरकारी नियंत्रण: वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सरकारी दखल को कोर्ट ने अनुच्छेद 14, 25 और 26 के संभावित उल्लंघन के रूप में देखा।
सलमान मिया का बयान:
जमात रज़ा-ए-मुस्तफ़ा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सलमान हसन खान (सलमान मिया) ने इसे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आज़ादी और संपत्ति के अधिकार पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को समाप्त करता है और समुदाय के मौलिक अधिकारों का हनन करता है।
कानूनी पक्ष:
संस्था की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजन कुमार दुबे, प्रिया पुरी, तौसीफ खान और मुहम्मद ताहा ने याचिका प्रस्तुत की। सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को गंभीरता से सुना और मामले की संवेदनशीलता को स्वीकार किया।
हालांकि कोर्ट ने कानून पर तत्काल रोक लगाने से इनकार किया, लेकिन यह मामला अब संवैधानिक समीक्षा की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
इस अवसर पर डॉ. मेहँदी हसन, हाफिज इकराम रज़ा और इरफान उल हक जैसे कोर कमेटी सदस्य भी उपस्थित रहे।