दिल्ली

उर्दू भारत के लिए विदेशी नहीं है”: सुप्रीम कोर्ट ने साइनबोर्ड पर उर्दू के उपयोग को सही ठहराया

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में मंगलवार को स्पष्ट किया कि उर्दू भाषा भारत की अपनी भाषा है और उसे विदेशी मानना एक भ्रांति है। अदालत ने महाराष्ट्र के अकोला जिले के पातुर नगर परिषद की नई इमारत पर मराठी के साथ उर्दू भाषा में साइन बोर्ड लगाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा, “यह पूर्वाग्रह कि उर्दू एक विदेशी भाषा है, पूरी तरह गलत है। उर्दू का जन्म इसी देश में हुआ और यह हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है।”

याचिका पूर्व नगर पार्षद वर्षाताई संजय बागड़े द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने साइनबोर्ड पर उर्दू भाषा के प्रयोग का विरोध करते हुए इसे गैर-कानूनी बताया था। इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी 2021 में यही फैसला सुनाया था कि महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (आधिकारिक भाषा) अधिनियम, 2022 या किसी अन्य कानून में उर्दू के उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “भाषा धर्म नहीं होती। भाषा संप्रेषण का माध्यम है और उसका उद्देश्य संवाद स्थापित करना होता है। यदि किसी नगर परिषद क्षेत्र में उर्दू भाषी नागरिक हैं, तो उनके लिए यह भाषा उपयोगी है।”

अदालत ने उर्दू को हिंदी और मराठी की तरह ही एक इंडो-आर्यन भाषा बताया और कहा कि यह भाषा भारत में रहने वाले विभिन्न सांस्कृतिक समूहों की संवाद की ज़रूरतों को पूरा करते हुए विकसित हुई है।

यह निर्णय भारत की भाषाई विविधता, सांस्कृतिक सहिष्णुता और संवैधानिक मूल्यों की पुष्टि करता है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, भाषा के आधार पर भेदभाव करना लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध है।