आरएसएस संविधान के अनुच्छेद 142, 32 और मौलिक ढांचे के सिद्धांत को अपने लिए बाधा मानता हैं
साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 191 वीं कड़ी में बोले कांग्रेस नेता
नयी दिल्ली. आरएसएस और भाजपा जिस हिंदू राष्ट्र की कल्पना करते हैं उसमें संविधान सबसे बड़ी बाधा है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का न्यायपालिका और मुख्य न्यायाधीश पर हमले को उनका निजी हमला नहीं माना जा सकता. ये बाबा साहब अंबेडकर के विज़न पर हमला है. ये बातें कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज़ आलम ने साप्ताहिक स्पीक अप कार्यक्रम की 191 वीं कड़ी में कहीं.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मोदी सरकार अपने राज्यपालों के माध्यम से विपक्ष शासित राज्यों की विधान सभाओं द्वारा पारित अध्यादेशों को रोककर अपनी तानाशाही थोपने की कोशिश कर रही थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत हस्तक्षेप करके अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाई है. उन्होंने कहा कि भाजपा संविधान के अनुच्छेद 32 को भी खत्म करना चाहती है जो नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार देता है.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि यह नहीं भूला जा सकता कि उपराष्ट्रपति मौलिक ढांचे के सिद्धांत को भी बदलने की वकालत कर चुके हैं जो सरकार को संविधान की प्रस्तावना को बदलने से रोकता है.
उन्होंने कहा कि इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा 42 वें संविधान संशोधन के बाद संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए समाजवादी और सेकुलर शब्द को हटाने के लिए भाजपा के सांसद दो बार राज्य सभा में प्राइवेट मेम्बर बिल ला चुके है और सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाल चुके हैं. इसी तरह सरकार की विचारधारा के प्रति झुकाव रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज पंकज मित्तल भी जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश रहते हुए प्रस्तावना में सेकुलर शब्द के होने को कलंक बता चुके हैं. यानी खुद केंद्र सरकार और संवैधानिक संस्थाओं में बैठे उसकी विचारधारा से जुड़े लोग ही संविधान को कमज़ोर करने का षड्यंत्र कर रहे हैं. जिसमें अगर कोई जज बाधा बनता है तो उसे धमकाने की कोशिश उपराष्ट्रपति से लेकर भाजपा के सांसद और नेता कर रहे हैं.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार के आगे झुकते हुए नहीं दिखना चाहिए. क्योंकि आम लोगों के न्याय का अंतिम सहारा न्यायालय ही है. इसलिए यह न्यायपालिका की परीक्षा का भी समय है.