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रमज़ान मुबारक का 21 वा रोज़ा

शेर ए खुदा अली इब्न अबी तालिब ( हज़रत अली ) की शहादत का दिन

आज ( 21 रमजान अल मुबारक ) अल्लाह के पैगम्बर (दूत) मुहम्मद साहब के दामाद, सुन्नी मुस्लिम के चौथे खलीफा, शिया मुस्लिम के पहले इमाम, इमाम हसन और कर्बला (इराक़) के मैदान अपनी परिवार के साथ भूखे प्यासे रहकर शहादत देने वाले इमाम हुसैन के वालिद की हज़रत अली की शहादत का दिन है,
आपकी पैदाइश 17 मार्च सन 600 में (13 रजअब , इस्लामिक कैलंडर का सातवां महीना) में क़ाबे के अंदर हुआ,
इनकी पैदाइश को लेकर एक किस्सा बहुत मशहूर है. बताया जाता है जब अली दुनिया में तशरीफ़ लाने वाले थे, तब इनकी मां फातिमा बिन्ते असद मक्का में काबे की तरफ ये कहती हुई जा रही थीं, ‘ऐ अल्लाह मुझे तुझ पर यकीन है और तेरे नबी (हज़रत इब्राहिम) पर यक़ीन है, जिन्होंने तेरे हुक्म पर इस घर (काबा) की नींव रखी. ऐ अल्लाह तुझे उसी पैग़म्बर की क़सम है, और तुझे मेरे गर्भ में पलने वाले बच्चे की क़सम है. मेरे प्रसव क़ो मेरे लिए आसान और आरामदायक बना दे.’ ये कहते हुए फातिमा बिन्ते असद काबे के पास पहुंची. काबे के गेट पर ताला लगा था. काबे की दीवार खुद ब खुद फट गई. फातिमा बीनते असद अकेली उस काबे के अंदर दाखिल हो गईं. दीवार फिर आपस में जुड़ गई. अली के वालिद अबुतालिब इब्ने अब्दुल मुत्तलिब भी काबे के पास पहुंचे.
हज़रत अली की पैदाइश के बारे में आगे कहा जाता है कि काबे के पास भीड़ जमा हो गयी. सब परेशान थे. काबे का गेट बंद है और फातिमा बिन्ते असद अंदर हैं. ताला खोला गया. फातिमा बिन्ते असद बाहर आईं उनकी गोद में बच्चा था. अली की मां फातिमा बिन्ते असद ने उनका नाम ‘हैदर’ रखा था.
हज़रत अली ने कई इस्लामिक जंगे लड़ीं.हज़रत अली ने खैबर की जंग में मरहब (जो यहूदी सेना का प्रमुख था) नाम के पहलवान को पछाड़ा था. मरहब ऐसा था कि उसकी ताकत किसी क़ो भी कंपा देती थी, हज़रत अली ने उसे ही पटकी नहीं दी, बल्कि उसके साथी ‘अंतर’ को भी पटक दिया. इस जंग में हज़रत अली ने खैबर के क़िले के दरवाज़े को उखाड़ कर ढाल की तरह इस्तेमाल किया था. इस दरवाज़े के बारे में बताया जाता है कि इसे करीब 20 लोग मिलकर बंद करते थे. अली ने खैबर की जंग को जीत लिया.
18 रमज़ान की रात हज़रत अली ने नमक और रोटी से रोज़ा इफ्तार किया. रिवायतों में उनकी बेटी ज़ैनब के हवाले से मिलता है कि रातभर बाबा (अली) बेचैन रहे. इबादत करते रहे. बार-बार आंगन में जाते और आसमान को देखते. 19 रमज़ान को सुबह की नमाज़ पढ़ाने के लिए अली मस्जिद पहुंचे. मस्जिद में मुंह के बल अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम नाम का शख्स सोया हुआ था. उसको हज़रत अली ने नमाज़ के लिए जगाया. और खुद नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो गए. इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक ख़म्भे के पीछे ज़हर में डूबी तलवार लेकर छिप गया. हज़रत अली ने नमाज़ पढ़ानी शुरू की. जैसे ही सजदे के लिए अली ने अपना सिर ज़मीन पर टेका, इब्ने मुलजिम ने ज़हर में डूबी हुई तलवार से अली के सिर पर वार कर दिया. तलवार की धार दिमाग़ तक उतर गई. ज़हर जिस्म में उतर गया.
गौरतलब हो कि अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम के बारे में कहा जाता है कि उसने ये हमला मुआविया के उकसावे में आकर किया. मुआविया अली के खलीफा बनाए जाने के खिलाफ था. हज़रत अली के जिस्म में ज़हर फैल गया हकीमों ने हाथ खड़े कर दिए और फिर 21 रमजान को वो घड़ी आई, जब शियाओं के पहले इमाम और सुन्नियों के चौथे खलीफा अली इस दुनिया से रुखसत हो गए.