संवाद/विनोद मिश्रा
बांदा। जिले में विलुप्त हो रहा कठिया गेहूं को खेतों में लहलहायें जानें के प्रयास का दावा हवा -हवाई बनकर रह गया। डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल की यह तमन्ना पूरी होती नहीं दिखती। दिल में ही घुट गई ,क्योंकि उनके बांदा कार्यकाल के पूर्व से ही सार्थक प्रयास भी नहीं हुये। गेहूं बुवाई के चल रहें वर्तमान सीजन में किसानों का रुझान कठिया गेहूं के प्रति बामुश्किल दस प्रतिशत ही बताया जा रहा है। वह भी बहुत ही कम क्षेत्रफल में। आपको बता दें की प्रशासन नें इसके उत्पादन को बढ़ावा देने की ठानी थी। लेकिन संबंधित विभाग इसके प्रति उदासीन से है। अब लगता नहीं की मंशा औऱ लक्ष्य के अनुरूप कठिया गेहूं खेतों में लहलहा पायेगा।
आपको बता दे की पूर्व डीएम अनुराग पटेल के कार्यकाल में तो इसके लिये कठिया गेहूं की कार्यशाला भी आयोजित कर इसको ब्रांड नेम दिया गया था “कठिया पेट की लाल दवा”। इसके उत्पादन में बहार लाने हेतु भी भरपूर प्रयास के निर्देश थे।
कठिया गेहूं को जिले के सभी अधिकारी खरीदें यह भी रणनीति बनी थी, जिससे किसानों को उचित मूल्य मिले और आय भी दो गुनी बढ़े। कठिया यहां का एक प्राकतिक गेंहू है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है।इसे दोबारा जीवित करने के उद्देश्य से कार्यशाला आयोजित हुई थी। इसमें 55 किसानों और वैज्ञानिक ने भाग लिया था।भरोसा दिलाया था की हम इसे कृषि विभाग के अधिकारियों की मदद से बढ़ाने का काम कर रहे हैं। पर ऐसा कुछ प्रयास कार्यशाला के बाद नहीं सा हुआ। और कठिया गेहूं के प्रति रुझान हवा -हवाई उड़न छू हो गया है।