उत्तर प्रदेश

बच्चों को संस्कृति, प्रकृति और संस्कार से जोड़ती हैं कहानियां

मेंटल हेल्थ कार्निवल में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कहानियां कहने और सुनने के प्रभाव पर कार्यशाला आयोजित

फीलिंग्स माइंड्स संस्था के सात दिवसीय मेंटल हेल्थ कार्निवल के सातवें दिन सुनायी गयीं कहानियां और बताए गए प्रभाव

रविवार को ताज होटल एंड कन्वेंशन सेंटर पर होगा कार्निवल का समापन एवं सम्मान समारोह, प्रतिभागियों को दिए जाएंगे प्रमाण पत्र

आगरा। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच शनिवार को फीलिंग्स माइंड्स संस्था द्वारा आयोजित मेंटल हेल्थ कार्निवल में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कहानियां कहने और सुनने का प्रभाव विषय पर एक जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। विमल विहार, बोदला− सिकंदरा रोड स्थित फीलिंग्स माइंड्स संस्था के कार्यालय पर आयोजित मेंटल हेल्थ कार्निवल की सातवें दिन की कार्याशाला का शुभारंभ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश भाटिया, पूजा बंसल ने किया। विषय परिवर्तन करते हुए संस्था की संस्थापक एवं अंतरर्राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक डॉ चीनू अग्रवाल ने कहा कि कहानियां कहने और सुनने से बौद्धिक क्षमता के साथ बच्चे संस्कृति, प्रकृति और संस्कारों से जुड़ते हैं। सनानत काल से कहानियों का हमारे समाज में विशेष महत्व रहा है। उन्होंने कहा कि वेदों की ऋचाएं आगे चलकर श्रुतियों के रूप में फैलीं। रामायण और महाभारत की कहानियां समाज को दिशा देती हैं। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था स्टोरी टेलिंग का एक क्लब भी संचालित करती है जिसमें एक दिन− एक कहानी रहती है। वर्तमान में कहानी कहना कला भी और करियर भी है।

इसके बाद कार्यशाला की मुख्यवक्ता नेहा पाटिल (बैंगलुरु), रुपाली चरण(दिल्ली) और शैलेश जिंदल ने कहानियों के प्रभाव पर व्याख्यान दिए। नेहा पाटिल ने कहा कि बच्चों को जब घर के बड़े कहानियां सुनाते हैं तो बच्चों में आत्मविश्वास विकसित होता है। साथ ही इससे बच्चे और अभिभावक के मध्य दोस्ती का रिश्ता भी बनता है।

रुपाली चरण ने कहा कि कहानियां दुनिया को देखने की अलग खिड़की की तरह होती हैं। जैसे कहानियां बिना टिकट के एक स्थान से दूसरे स्थान में मानसिक सफर करवा देती हैं। कल्पनाशीलता विकसित होती है। स्टोरी टेलर शैलेश जिंदल ने कहा कि दादी− नानी से किस्से कहानियां सुनने वाले बच्चे अंतर्मुखी नहीं बल्कि बाहृयमुखी बन सकते थे। आज बच्चों ने दोस्ती सोशल मीडिया से कर ली है। आपस में बात नहीं होती। मैसेज पर बात होती है। जबकि प्रभावी तरीके से कही गयी कहानियां मन मस्तिष्क पर सकरात्मक प्रभाव छोड़ती हैं। उन्होंने कहा कि कहानियां न केवल बच्चों की कल्पनाशक्ति को पंख देती हैं, बल्कि वे अपने अनुभव, डर, इच्छाएं और भावनाएं कहानियों के पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्त भी कर पाते हैं। डॉ राकेश भाटिया ने कहा कि आज बच्चों के साथ बड़ों में भी अपनी बातें साझा करने की दिक्कत दिखने को मिल रही है। कहानी कहने की कला इस दिक्कत में राहत देती है।

कार्यशाला के दौरान कहानी सुनाने और रचनात्मक लेखन की गतिविधियां कराई गईं। कार्यशाला के समापन पर जोर दिया गया कि स्कूलों और घरों में नियमित रूप से कहानी सत्र आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को मज़बूती मिल सके और वे खुलकर अपनी बात कह सकें।

सह संस्थापक डॉ रविंद्र अग्रवाल ने बताया रविवार को फीलिंग्स माइंड्स संस्था का विधिवत शुभारंभ ताज होटल एंड कन्वेंशन सेंटर पर दोपहर 3 बजे से होगा। कार्यक्रम में सम्मान समारोह एवं प्रतिभागियों काे प्रमाण पत्र प्रदान किये जाएंगे। जिसके साथ कार्यशाला का समापन होगा।