उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के एक राजकीय इंटर कॉलेज से सरकारी लापरवाही का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां वर्ष 2016 में प्राप्त हुए 73 लैपटॉप पिछले आठ वर्षों से एक कमरे में बंद पड़े हैं। इन लैपटॉप की सुरक्षा के लिए प्रतिदिन दो सिपाहियों की ड्यूटी लगाई गई है, जिनकी तैनाती पर अब तक लगभग 53.76 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि इन लैपटॉप की कुल कीमत मात्र 14.60 लाख रुपये बताई जा रही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह लैपटॉप समाजवादी सरकार के समय शिक्षा संस्थानों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के उद्देश्य से भेजे गए थे। लेकिन संबंधित विभाग और कॉलेज प्रशासन की लापरवाही के चलते इन्हें छात्रों तक नहीं पहुंचाया जा सका।
लैपटॉप पुरानी तकनीक के हो चुके हैं
विशेषज्ञों का मानना है कि 2016 के बाद से तकनीक में काफी बदलाव आ चुका है। ऐसे में अब ये लैपटॉप न तो शैक्षणिक संस्थानों की आधुनिक जरूरतों के अनुरूप हैं और न ही इन्हें मरम्मत कर फिर से उपयोग में लाना लाभकारी रहेगा।
प्रशासनिक चुप्पी बनी सवालों के घेरे में
इस पूरे मामले पर न तो शिक्षा विभाग ने कोई ठोस जवाब दिया है, न ही जिला प्रशासन की ओर से किसी जिम्मेदारी तय किए जाने की बात कही गई है। वहीं, शिक्षा से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना को सरकारी संसाधनों की खुली बर्बादी मान रहे हैं।
सवालों के घेरे में व्यवस्था
इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में ऐसी सुस्ती और लापरवाही क्यों बरती जाती है? क्यों जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती? और आखिर छात्रों तक पहुंचने से पहले ये संसाधन फाइलों और ताले में क्यों कैद हो जाते हैं?
अब देखने वाली बात होगी कि क्या सरकार इस मामले की जांच कर दोषियों पर कोई कार्रवाई करती है या यह भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा।